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दृष्टि दोष क्या है? || Drishti Dosh kya hai

दृष्टि दोष क्या होता है? 

जब आंखो द्वारा लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करने की क्षमता क्षीण हो जाती है तो स्पष्ट दिखाई नहीं देता और दृष्टि धुंधली हो जाती है इसे ही आंख का दृष्टि दोष कहते हैं। एक सामान्य व्यक्ति 25 सेंटीमीटर से लेकर अनंत दूरी पर रखी वस्तु को अपनी आंखों से देख सकता है। परंतु उम्र बढ़ने के साथ या अन्य कारणों से व्यक्ति कि यह क्षमता कम या समाप्त हो जाती है जिससे उसे कई प्रकार के दृष्टि दोष उत्पन्न होते हैं। 

दृष्टि दोष के प्रकार 

निकट दृष्टि दोष 

इस प्रकार के दोष में व्यक्ति नजदीक की वस्तु को देख लेता है, परन्तु दूर स्थित वस्तु को नहीं देख पाता है। इस कारण वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर रेटिना के आगे बन जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं।

1) लेंस की गोलाई बढ़ जाना। 

2) लेंस को फोकस दूरी घट जाना। 

3) लेंस की क्षमता का बढ़  जाना। 

निकट दृष्टि दोष का निवारण 

इस दोष निवारण के लिए उपयुक्त फोकस दूरी के अवतल लेंस का प्रयोग जाता है 

दूर दृष्टि दोष 

इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को दूर की वस्तु दिखाई पढ़ती है, परंतु निकट की वस्तु दिखाई नहीं पड़ती है। इस रोग में निकट की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं 

1) लेंस को गोलाई कम हो जाना। 

2) लेंस की फोकस दूरी बढ़ जाना। 

3) लेंस की क्षमता घट जाना।  

दूर दृष्टि दोष का निवारण

इस दोष के निवारण के लिए उपयुक्त फोकस दूरी के उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है। 

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जरा दृष्टि दोष 

वृद्धावस्था के कारण आँख की समंजन क्षमता (लेंस कि फोकस दूरी को समायोजित करने की क्षमता) घट जाती है या समाप्त हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति न तो दूर की वस्तु और न निकट की ही वस्तु को देख पाता है। 

जरा दृष्टि दोष का निवारण 

इस प्रकार के दृष्टि दोष के निवारण के लिए द्विफोकसी लेंस का उपयोग किया जाता है । 

अबिन्दुकता 

यह दोष नेत्र लेंस के क्षैतिज या उर्ध्वाधर वक्रता में अंतर आ जाने के कारण उत्पन्न होता है। इसमें नेत्र क्षैतिज दिशा या उर्ध्व दिशा में से किसी एक ही दिशा में ठीक प्रकार से देख पाता है। अर्थात व्यक्ति या तो क्षैतिज दिशा में ठीक से देख पाता है या फिर उर्ध्व दिशा में। इसके निवारण हेतु बेलनाकार लेंस का प्रयोग किया जाता है। 

वर्णांधता  

कुछ व्यक्तिय सभी रंगों को देखने की क्षमता नहीं रखते हैं। इसे वर्णांधता कहते हैं। वर्णांधता कई प्रकार और स्तर की होती है। यह रेटिना की शंक्वाकार कोशिकाओं के विभिन्न दोषों पर निर्भर करता है। वर्णांधता एक प्रकार की आनुवांशिक बीमारी होती है, जिसका इलाज नहीं किया जा सकता है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति हरे एवं लाल रंग की पहचान नहीं कर पाता है। 

दृष्टि निर्बंध

किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर 1/10 सेकण्ड तक रहता है अतः यदि वस्तु को आँख के सामने से हटा दिया जाए तो वस्तु 1/10 सेकण्ड तक दिखाईं देती रहेगी। दृष्टि का यह विशेष गुण दृष्टि निर्बंध कहलाता है चलचित्र इसी सिद्धांत पर बनाया जाता है। दृष्टि निर्बंध के कारण ही उल्काएँ आकाश में लम्बी रेखा जैसा मालूम पढ़ते है। तेजी से चलते हुए बिजली के पंखे भी इसी कारण अस्पष्ट दिखाईं पड़ते हैं। 

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Sneha Katiyar

My name is Sneha Katiyar. I am a student. I like reading books

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