संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Jean Piyage ka sangyanatmak vikas siddhant)

संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

स्विट्जरलैंड के जीव वैज्ञानिक जीन पियाजे ने 1936 में बुद्धि के विकास के संबंध में जो सिद्धांत प्रस्तुत किए उसे संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत में जीन पियाजे ने इस बात पर बल दिया है कि बच्चे संसार के बारे में अपनी समझ की रचना सक्रिय रूप से करते हैं। नए विचारों को अंतर्निहित करने के लिए बच्चे अपने चिंतन का अनुकूलन करते हैं।

संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दावली  

संज्ञान-(knowledge)

प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान जिससे वह अपने वातावरण या बाह्यजगत से सीखता है। 

स्कीमा-(Schema)

सूचनाओं का वह समूह जो किसी कंप्यूटर के फोल्डर की तरह हमारे मस्तिष्क में होता है।

आत्मसातीकरण-(Assimilation) 

पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान के साथ जोड़ना। 

समाविष्टीकरण-(Accommodation)

पहले से निर्मित स्कीम या जानकारी को सुधारना या उसके स्थान पर नई स्कीम बनाना। 

अनुकूलन(Adaptation)

पूर्व निर्मित स्कीम या जानकारी तथा नई स्कीम के मध्य सामंजस्य करने को ही अनुकूलन कहते हैं। 

पलटावी की समस्या-(Problem of Reversibility)

स्कीमा  में बदलाव की अक्षमता। अर्थात 7 साल तक बच्चे अपने स्कीमा को स्वयं बदल नहीं पाते हैं जिसे पलटावी की समस्या कहते हैं।

वस्तु स्थायित्व-(Object Permanence)

दृष्टि क्षेत्र से बाहर के वस्तुओं का भी अस्तित्व होता है।  नवजात शिशु में वस्तु स्थायित्व का गुण नहीं पाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि आप बच्चों के सामने उसके खिलौने को छुपा देते हैं तो बच्चा ऐसी प्रतिक्रिया करेगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो अर्थात बच्चा खिलौना नहीं ढूंढेगा। बच्चा मान लेता है कि खिलौना नहीं है। 

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बालक में चिंतन

जीन पियाजे का मानना था कि बच्चा जन्म से वैज्ञानिक होता है वह अपने आसपास की दुनिया से भौतिक सूचनाएं एकत्रित करता है। जीन पियाजे मानते थे कि बुद्धि अनुकूलन की एक प्रक्रिया होती है जो जन्म से ही प्रारंभ हो जाती है बालक चिंतन द्वारा अपनी स्कीम निर्मित करता है जिससे उसे अनुकूलन में सहायता मिलती है। स्कीम के निर्माण में बालक दो प्रकार का चिंतन करता है। 

1) समाविष्टीकरण 

2) समावेशन 

इस प्रकार के चिंतन द्वारा बालक स्कीमा का निर्माण करता है।  स्कीमा एक मानसिक संरचना होती है जो आयु के साथ साथ विकसित होती है इसलिए पियाजे का मानना था कि बुद्धि आयु के समानुपातिक होती है। अर्थात जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है बच्चे की बुद्धि का विकास होता जाता है। इस प्रक्रिया में बालक निम्न  4 अवस्थाओं से गुजरता है। 

बालक की संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं

1) संवेदी गामक अवस्था (sensory motor stage)-[ 0-2 वर्ष ]

2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (pre operational stage)-[ 2-7 वर्ष ]

3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (concrete operational stage)-[ 7-11 वर्ष ]

4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (formal operational stage)-[ 11-परिपक्वता ]

संज्ञानात्मक-विकास-की-अवस्थाएं
संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं

संवेदी गामक अवस्था (sensory motor stage)-[0-2 वर्ष]

यह मानसिक विकास की पहली अवस्था है जो जन्म से प्रारंभ हो जाती है और लगभग 2 वर्ष तक चलती है इस अवस्था में बालक मंत्रियों के माध्यम से अपना अनुकूलन करता है इंद्रियों से बाहर की दुनिया का उसके लिए कोई अस्तित्व नहीं है परंतु लगभग 20 महीने बाद उसमें वस्तु स्थायित्व बनने लगता है पियाजे का मानना था कि इस अवस्था में बालक का नैतिक विकास नहीं हो पाता है इसलिए इसे स्वार्थ की अवस्था भी कहते हैं। 

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (pre operational stage)-[ 2-7 वर्ष ]

इस अवस्था में बालक में वस्तु स्थायित्व होने लगता है।  बालक विभिन्न जानकारियों को विकसित करना प्रारंभ कर देता है जैसे- रंग,आकार, स्वाद, छोटी बड़ी वस्तुओं में तुलना, समानता आदि। परंतु इस अवस्था में चिंतन आत्म केंद्रित होने के कारण पलटावी की समस्या पाई जाती है। 

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (concrete operational stage)-[ 7-11 वर्ष ]

इस अवस्था में पलटावी की समस्या समाप्त हो जाती है तथा पलटावी का गुण विकसित होने लगता है बालक अनुकूलन स्थापित करना और आत्मसात करना प्रारंभ कर देते हैं। समय, दूरी, नाप, तोल आदि की पहचान करना प्रारंभ कर देते हैं। मूर्त वस्तुओं और मूर्त घटनाओं के बारे में बालक अनुकूलन करना सीख जाता है। इस अवस्था में तर्क करने का गुण भी विकसित होने लगता है। 

अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (formal operational stage)-[ 11-परिपक्वता ]

यह बालक के विकास की अंतिम अवस्था है इस अवस्था में बालक मूर्त और अमूर्त दोनों घटनाओं के बारे में बालक का स्कीमा निर्मित हो जाता है परिकल्पना,  तर्क,  चिंतन,  समस्या समाधान जैसी उच्च मानसिक क्रियाएं बालक आसानी से करने लगता है। 

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत की आलोचना 

वैसे तो जीन पियाजे का सिद्धांत सबसे अधिक विश्वसनीय और वैध माना जाता है परंतु इस सिद्धांत की आलोचना में यह कहा जाता है कि पियाजे ने मानसिक विकास के चरणों के क्रम को अपरिवर्तनशील बताया है। परंतु यह देखा जाता है कि यदि बच्चे को अच्छा वातावरण दिया जाए तो वह अपनी अवस्था की क्षमता से अधिक सीख सकता है। 

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Sneha Katiyar

My name is Sneha Katiyar. I am a student. I like reading books

This Post Has One Comment

  1. Alok verma

    Good job

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