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कानून कैसे बनता है?|| Kanoon Kaise banta hai?

संसद में कानून-निर्माण की प्रक्रिया 

संसद का मुख्य कार्य कानून बनाना है। दोनों सदनों में समान विधायिनी प्रक्रिया की व्यवस्था की गई है। ज़ब  कोई विधेयक किसी सदन में प्रस्तुत किया जाता है तो  संसद में उस विधेयक पर विचार किया जाता है। विचार करने की इस प्रक्रिया को वाचन कहते हैं। किसी भी विधेयक को प्रत्येक सदन में पारित होने के लिए पाँच चरणों से गुज़रना पड़ता है। 

प्रस्तुतीकाण तथा प्रथम वाचन

किसी भी कानून को संसद में प्रस्तुत करने के लिए एक माह पूर्व इसकी सूचना संसद को देनी होती है। जो सदस्य किसी विधेयक को प्रस्तुत करना उस विधेयक (कानून का ड्राफ्ट) का शीर्षक तथा उद्देश्य पढ़कर सुनाता है तथा इस सम्बन्ध में भाषण भी दे सकता है। यह स्तर ही विधेयक का प्रथम वाचन कहलाता है और इसके बाद इसे सरकारी बजट में प्रकाशित कर दिया जाता है।  

द्वितीय वाचन

तत्पश्चात् किसी निश्चित दिन विधेयक का द्वितीय वाचन प्रारम्भ होता है। प्रस्ताव प्रस्तुत होने पर सदन में विधेयक (कानून ड्राफ्ट) के मूल सिद्धान्तों पर वाद-विवाद प्रारम्भ होता है। विधेयक का प्रस्तावक प्रस्तावित विधेयक की आवश्यकता और महत्त्व को स्पष्ट रूप में समझाता है तथा यह निर्णय करता है कि विधेयक पर शीघ्र विचार किया जाए या उसे प्रवर समिति को सौंप दिया जाए या जनमत जानने के लिए जनता तक प्रसारित कर दिया जाए या दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति को सौंप दिया जाए। इसमें प्रत्येक अनुच्छेद पर विस्तार से विचार नहीं किया जाता है।

समिति स्तर

यदि सदन का निर्णय उस विधेयक को किसी विशेष समिति को भेजने का हो तो ऐसा ही किया जाता है। प्रवर समिति विधेयक की धाराओं पर विस्तारपूर्वक विचार करती है और पूरी छानबीन करने के पश्चात् अपनी रिपोर्ट तैयार करती है कि बिल रद्द कर दिया जाए या उसे उसके मौलिक रूप में स्वीकार कर लिया जाए या उसे कुछ संशोधनों के बाद पारित किया जाए। समिति विधेयक के साथ अपनी रिपोर्ट निश्चित समय में सदन को भेज देती है। 

प्रतिवेदन स्तर 

विधेयक के सम्बन्ध में रिपोर्ट तथा संशोधन विधेयक को छपवाकर सदन के सदस्यों में बाँट दिया जाता है। इस स्तर पर विधेयक (कानून ड्राफ्ट) पर व्यापक रूप से विचार होता है। विधेयक की प्रत्येक धारा, समिति की रिपोर्ट तथा उसके द्वारा प्रस्तुत किये गये संशोधनों पर विस्तारपूर्वक वाद विवाद होता है। वाद विवाद के पश्चात् विधेयक पर मतदान कराया जाता है। यदि बहुमत विधेयक के पक्ष में हो तो विधेयक पारित कर दिया जाता है और कानून बन जाता है अन्यथा विधेयक रद्द कर दिया जाता है। 

तृतीय वाचन

तृतीय वाचन किसी विधेयक की सदन में अन्तिम अवस्था होती इस अवस्था में विधेयक (कानून ड्राफ्ट) की प्रत्येक धारा पर विचार नहीं किया जाता। इसके सामान्य सिद्धांतों पर केवल बहस होती है और इसको भाषा को अधिक-से-अधिक स्पष्ट बनाने के प्रयत्न किये जाते हैं। विधेयक की यह अवस्था औपचारिक है, जिसमें इसके रद्द होने की सम्भावना बहुत कम होती है। 

दूसरे सदन में विधेयक

जब विधेयक (कानून ड्राफ्ट) एक सदन में पारित हो जाता है तो वह दूसरे सदन में भेजा जाता है। विधेयक को यहाँ पर भी उन्हीं अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन उसे रद्द कर दे या छ: महीने तक उस पर कोई कार्यवही न करे या उसमें ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो पहले सदन की स्वीकृत न हो तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों को संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। दोनों सदनों के  उपस्थित सदस्य तथा मत देने वाले सभी सदस्यों के बहुमत से ही विधेयक पारित होता है, क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों से अधिक होती है, इसलिए संयुक्त बैठक ये लोकसभा की इच्छानुसार ही निर्णय होने की सम्भावना होती है । 

राष्ट्रपति की अनुमति

जब कोई विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है हो उस पर राष्ट्रपति को अनुमति लेना आवश्यक है, अन्यथा कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता।  जब कोई विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति या तो विधेयक पर अपनी अनुमति दे देते हैं अथवा वे अपने संशोधन सहित विधेयक क्रो संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज देते हैं। परन्तु यदि संसद उसे पुन: पारित कर देती है तो वह पुन: राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है तथा राष्ट्रपति उस विधेयक (कानून ड्राफ्ट) पर अपनी अनुमति देते हैं और वह विधेयक कानून बन जाता है। 

विधेयक के प्रकार

विधेयक 2 प्रकार के होते हैं –

1)सरकारी विधेयक 

2)गैर-सरकारी अथवा निजी विधेयक

जो विधेयक सरकार के किसी मन्त्रि द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं उन्हें सरकारी विधेयक कहा जाता हैं। अन्य सांसदों द्वारा प्रस्तावित विधेयक (कानून ड्राफ्ट) निजी विधेयक कहलाते हैं। सरकारी विधेयक भी दो तरह के होते हैं

1)वित्त विधेयक 

2)साधारण विधेयक 

वित्त विधेयक पारित होने की प्रक्रिया

आय-व्यय से सम्बन्धित सभी विधेयक वित्त विधेयक कहे जाते हैं, संविधान के अनुच्छेद 110 में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं, इसका निर्णय लोकसभा अध्यक्ष करता है। 

वित्त विधेयक पारित करने की भी लगभग वही प्रक्रिया है, जो साधारण विधेयक पारित करने की है। फिर भी इस संबंध में कुछ विशेष बातें हैं जैसे-वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से ही प्रस्तावित किया जा सकता है। वित्त विधेयक (कानून ड्राफ्ट) लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पारित होने के बाद ही विधेयक राज्यसभा में जाता है। 

यदि राज्यसभा 14 दिन तक वित्त विधेयक को पारित नहीं करती है या ऐसा संशोधन करती है जो लोकसभा को मान्य नहीं है, तो भी यह विधेयक मूल रूप में दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है तथा राष्ट्रपति के  हस्ताक्षर के बाद ये विधेयक कानून बन जाता है। वित्त विधेयक तथा साधारण विधेयक में सबसे बड़ा अंतर यह है कि वित्त विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकते न ऐसे विधेयक को सदनों की संयुक्त समिति को ही सौंपा जा सकता है। 

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Sneha Katiyar

My name is Sneha Katiyar. I am a student. I like reading books

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