राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (National Education Policy 1986)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (NATIONAL EDUCATION POLICY)

सन् 1964 में भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया गया।  आयोग ने अपना प्रतिवेदन 1966 में प्रस्तुत  किया। आयोग ने अपने प्रतिवेदन में भारत सरकार को पूरे देश में समान शिक्षा संरचना के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण करने के लिए कहा। आयोग की सिफारिशों पर चर्चा हुई और सन् 1968 में भारत सरकार ने यह स्वीकार किया कि देश के आर्थिक, सांस्कृतिक व राष्ट्रीय विकास के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण करना अति आवश्यक है। इसीलिए भारतीय शिक्षा आयोग के प्रतिवेदन को कुछ संशोधनों के पश्चात् इसी के आधार पर भारत सरकार ने 24 जुलाई 1968 को स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)की घोषणा की तथा इस पर अमल होना प्रारम्भ हो गया।

मार्च 1977 में केंद्र में जनता दल की सरकार बनी इस सरकार के बनते ही नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण हुआ तथा 1979 में इसे घोषित कर दिया गया। इस शिक्षा नीति को संसद में पास होने के बाद मई 1986 में इसे प्रकाशित किया गया। तथा इसकी कार्ययोजना को भी प्रकाशित किया गया। भारत  की राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1986 पहली नीति है जिसमें नीति के साथ साथ उसको पूरा करने की योजना भी प्रस्तुत की गयी। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का दस्तावेज (Document of Natinal Education Policy)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1906 का दस्तावेज कुल 12 भागों में विभाजित है।

खण्ड एक -प्रस्तावना (introduction)

राष्ट्र में आर्थिक एवं तकनीकी विकास के लिए उपलब्ध संसाधनों से अधिक से अधिक लाभ सभी वर्गो तक पहुँचाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए भारतीय शिक्षा आज ऐसी जगह आकर खड़ी है जहाँ पर देश की परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ है। देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही  है जिससे लोकतन्त्र के लक्ष्यों को प्राप्त करने में समस्या आ रही है। इसके अलावा भविष्य में अनेक समस्याओं का सामना करना होगा। नई चुनौतियों तथा सामाजिक आवश्यकताओं ने सरकार के लिए यह जरूरी कर दिया है कि वह एक नई शिक्षा नीति तैयार करे तथा उसे क्रियान्वित  करे।

खण्ड दो -शिक्षा का सार, भूमिका  (Essence of Education, Introduction)

शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य के अन्दर मानसिक शारीरिक चारित्रिक, सांस्कृतिक, लोकतन्त्रीय गुणों का विकास होता है शिक्षा मनुष में स्वतन्त्र सोच तथा चिन्तन का विकास करती है। शिक्षा के द्वारा प्रजातन्त्रीय लक्ष्य – समानता,  स्वतन्त्रता, भ्रातृत्व, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और न्याय की प्राप्ति कर सकते हैं। यह आर्थिक विकास करने में सहायक है। शिक्षा के द्वारा वर्तमान और भविष्य का निर्माण कर सकते है इसलिए शिक्षा वास्तव में एक उत्तम साधन है।

खण्ड तीन-राष्ट्रीय प्रणाली (National System)

शिक्षा के द्वार सभी के लिए जाति, धर्म व लिंग में भेदभाव के बिना समान रूप से खुले हैं। शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली से तात्पर्य एक समान शिक्षा सरंचना से है सम्पूर्ण देश में 10+2+3 शिक्षा 10 वर्षीय शिक्षा में 5 वर्षीय प्राथमिक शिक्षा तथा 3 वर्षीय उच्च प्राथमिक शिक्षा और उसके बाद 2 वर्षीय हाईस्कूल शिक्षा की व्यवस्था होगी +2 पर इण्टरमीडिएट शिक्षा तथा +3 पर स्नातक शिक्षा प्रदान की जाएगी। |

खण्ड चार- समानता के लिए शिक्षा (Education for Equality)

शिक्षा नीति में असमानताओं को दूर करके सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराये जाएंगे। महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा का प्रयोग साधन के रूप में किया जाएगा। शिक्षण संस्थाओं में महिला विकास के कार्यक्रम शुरू कराए जाएंगे। जिन कारणों से बालिकायें अशिक्षित रह जाती है, सबसे पहले उन कारणों का समाधान किया जाएगा। निर्धन परिवारों के बच्चों को 14 वर्ष तक की अनिवार्य शिक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। अनुसूचित जातियों के लिए छात्रवृत्ति तथा छात्रावासों की व्यवस्था की जाएगी।अनुसूचित जातियों के लिए शैक्षिक सुविधाओं का विस्तार करने सम्बन्धी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगारकार्यक्रम तथा रोजगार गारण्टी कार्यक्रमों की व्यवस्था की जाएगी।

खण्ड पाँच – विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक पुनर्गठन (Educational Restructuring at Various Levels)

शिशुओं की देखभाल और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इस कार्यक्रम में स्थानीय समुदायों का पूरा सहयोग लिया जाएगा। शिशुओं की देखभाल करने वाली सस्थाएं तथा शिक्षा के केन्द्र पूरी तरह बाल-केन्द्रित होंगे। प्रारम्भिक शिक्षा में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों का प्रवेश तथा विद्यालय में रुके रहना, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, शिक्षण विधियाँ बाल केन्द्रित, शारीरिक दण्ड न दिया जाना, आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था तथा ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड की योजना को लागू किया जाएगा। माध्यमिक स्तर पर विशेष योग्यता वाले बालकों  को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए ‘गति निर्धारक विद्यालयों (Pace Sctting Schools) की स्थापना की जाएगी।

उच्च शिक्षा का नियोजन व उच्च शिक्षण संस्थाओं में समन्वय स्थापित करने के लिए शिक्षा-परिषदें बनाई जाएगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग शिक्षा के स्तरों पर निगरानी रखने के लिए समन्वय पद्धतियाँ बनाएगी। शिक्षण विधियों को बदलने के प्रयास किए जाएंगे। अनुसन्धान करने के लिए आर्थिक सहायता दी जाएगी। उच्च शिक्षा में अधिक अवसर उपलब्ध कराने तथा शिक्षा को जनतांत्रिक बनाने के उद्देश्य से खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाएगी।

खण्ड छ:- तकनीकी तथा प्रबन्ध शिक्षा (Technical and Management Education)

तकनीकी तथा प्रबन्ध शिक्षा का पुनर्गठन करते समय वर्तमान तथा भविष्य की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाए। ग्रामीण लोगों में भी तकनीकी शिक्षा की जरूरत है। अतः इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। महिलाओं, आर्थिक तथा सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग तथा विकलांगों के लिए भी तकनीकी शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाए। तकनीकी तथा प्रबन्ध शिक्षा के कार्यक्रम, पॉलिटेक्निक विद्यालय आदि को प्रोत्साहित किया जाए। इनके लिए पर्याप्त मार्गदर्शन तथा परामर्श की व्यवस्था की जाए।

खण्ड सात- शिक्षा व्यवस्था का क्रियान्वयन (Implementation of Education System)

शिक्षा व्यवस्था के क्रियान्वयन के लिए सभी अध्यापकों की जवाबदेही निश्चित की जाए। अध्यापकों के लिए उत्तरदायित्व, छात्रों के लिए सही आचरण पर बल, शिक्षण संस्थाओं को अधिक सुविधाएं देना तथा राज्य स्तर पर तय किए गए मानकों के अनुसार शिक्षण संस्थाओं के मूल्यांकन की व्यवस्था करनी होगी।

खण्ड आठ -शिक्षा की विषय-वस्तु तथा प्रक्रिया को नया मोड़ देना। 

शिक्षा के पाठ्यक्रम तथा  प्रक्रियाओं को सुदृढ़ किया जाए, पुस्तकों की गुणवत्ता सुधारने, छात्रों तक आसानी से पहुँचाने, स्वाध्ययन करने व रचनात्मक लेखन को प्रोत्साहित करने के उपाय  किए जाएंगे। पुस्तकालयों में सुधार तथा नए पुस्तकालयों की स्थापना की जाएगी । सूचनाओं के प्रसारण में कला एवं संस्कृति के प्रति जागरूक करने में मूल्यों का विकास करने में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग किया जाएगा। कार्यनुभव को सभी स्तरों पर शिक्षा का अनिवार्य बनाया जाएगा । वातावरण के  प्रति जागरूकता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। अत: इसके  लिए विद्यालयों में उचित व्यवस्था करने के  लिए कहा जाएगा। गणित को समझने विश्लेषण तथा तार्किक तालमेल के  प्रशिक्षण का साधन समझा जाए । विज्ञान शिक्षा के द्वारा बालकों में जिज्ञासा,सृजनशीलता, वस्तुनिष्ठता आदि योग्यताएं विकसित की जाए । 

खण्ड नौ-अध्यापक

अध्यापकों  के  वेतन तथा सेवा-शर्तों में सुधार किया जाए । जिससे प्रतिभाशाली तथा योग्य व्यक्ति इसकी ओर आकर्षित हों । सम्पूर्ण देश में एक समान वेतन तथा सेवा-शर्तों के प्रयास किए जाएं। अध्यापक शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाए। अध्यापक शिक्षा प्रणाली में सुधार किया जाएगा।  ईमानदारी तथा मर्यादा के सम्बन्ध में अध्यापकों को सार्थक भूमिका अदा करनी चाहिए। अध्यापकों को रचनात्मक व सृजनात्मक दिशा में प्रोत्साहित करने तथा परिस्थितियों के अनुसार  तैयार करने के  लिए सरकार को समुचित प्रयास करने चाहिए। 

खण्ड दस-शिक्षा का प्रबंध

शिक्षा की योजना एवं प्रबन्ध प्रणाली में परिवर्तन को प्राथमिकता दी जाएगी। दीर्घकालीन योजना बनाने, विकेन्द्रीकरण व शिक्षण संस्थाओं में स्वतन्त्रता की भावना का विकास, योजना व प्रबन्ध में  महिलाओं की भागीदारी, उददेश्य व मानकों के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व इस परिवर्तन में मुख्य बिन्दु होंगे । राष्ट्रीय स्तर पर ”भारतीय शिक्षा सेवा ‘ राज्य स्तर पर “प्रान्तीय शिक्षा सेवा’ और जिला स्तर पर ‘जिला शिक्षा परिषद’ का गठन किया जाए जो शिक्षा के  प्रबन्ध के प्रति उत्तरदायी हो । 

खण्ड नौ -संसाधन और समीक्षा 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NATIONAL EDUCATION POLICY) 1986 को लागू करने तथा उसके क्रियान्वयन के लिए एक बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता होगी । प्रत्येक प्रस्तावित कार्य के लिए अनुमानित धनराशि की व्यवस्था दान, उपहार, शुल्क आदि से की जाएगी। आठवीं पंचवर्षीय योजना से शिक्षा में राष्ट्रीय आय का 6%  से अधिक निवेश किया जाएगा प्रत्येक पांच वर्ष बाद शिक्षा नीति की समीक्षा की जाएगी । समय-समय पर उभरती हुई प्रवृत्ति को जानने के लिए मूल्यांकन भी किया जाएगा । 

खण्ड बारह -भविष्य 

इसमें यह विश्वास किया गया कि भविष्य में हम शत-प्रतिशत्त साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे हमारे देश के उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति श्रेष्ठतम् व्यक्तियों में सम्मिलित होंगे । 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल तत्त्व (Fundamental Elements of National Education Policy)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1986 के मूल तत्त्व इस प्रकार हैं-

1) पूरे देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू की जाएगी।

2) प्राथमिक शिक्षा 6 से 14 वर्ष की आयु तक निशुल्क एवं अनिवार्य उपलब्ध कराई जाएगी।

3) प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय पर रोक लगाई जाएगी।

4) स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्त्री निरक्षरता उन्मूलन तथा व्यावसायिक व तकनीकी प्रशिक्षण पर बल दिया जाएगा।

5)अल्पसंख्यको की शिक्षा पर गुणात्मक और सामाजिकता की दृष्टि से विशेष ध्यान दिया जायेगा।

6)विकलागों की शिक्षा के लिए विशेष प्रयास किए जायेंगे। 

7)गति निर्धारक विद्यालय प्रतिभाशाली बच्चों के विकास के लिए खोले जाएंगे।

8)उच्च माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया जाएगा।

9)कार्यानुभव को प्रत्येक स्तर की शिक्षा पर अनिवार्य किया जाएगा।

10) प्रौढ़ शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाएगी।

11)तकनीकी और प्रबन्ध शिक्षा सस्थाओं को अधिक सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।

12) शिक्षा के द्वारा मूल्यों विकास किया जाएगा।

13)गणित व विज्ञान की शिक्षा के लिए आधुनिक तकनीकी उपकरणों की व्यवस्था की जाएगी।

13) पुस्तकों की गुणवत्ता में सुधार, लेखन को प्रोत्साहन, पुस्तकालयों आदि की उचित व्यवस्था की जाएगी। 

14)शिक्षक का चयन योग्यता, वस्तुनिष्ठता तथा व्यावहारिकता के आधार पर किया जाएगा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के गुण (Merits of National Education policy, 1986)

1)शिक्षा को राष्ट्रीय  महत्त्व का विषय माना गया और इस पर बजट का 6% व्यय करने की बात कही गई।

2) यह पहली ऐसी शिक्षा नीति थी जिसमें इसको पूरी करने की योजना भी साथ में प्रस्तुत की  गई थी। 

3) राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NATIONAL EDUCATION POLICY) में घोषित शिक्षा संरचना 10+2+3 को पूरे देश में अनिवार्य रूप से लागू कर दिया गया । 

4) प्राथमिक शिक्षा में सुधार हेतु Operation Black Board द्वारा 90% स्कूलों  को इस योजना का लाभ मिला है

5) ग्रामीण क्षेत्रों में गति निर्धारक विद्यालय खोलने गये। 2012 तक 566 नवोदय विद्यालय स्थापित किए जा चुके हैं । 

6) इस नीति की घोषणा के बाद 1986 में दिल्ली में “इन्दिरा गांधी राष्टीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। 2012 तक 16 मुक्त विश्वविद्यालय खोले जा चुके हैं । 

7) शिक्षकों के वेतन बढ़ाए गए तथा सेवा-शर्तो में सुधार भी किए गए । 

8) राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)में परीक्षाओं को विश्वसनीय तथा वस्तुनिष्ठ बनाने पर बल दिया गया।

9) इस शिक्षा नीति में शैक्षिक अवसरों की समानता पर बल दिया गया जिससे शिक्षा सर्वसुलभ हो गई। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के  दोष (Demerits of National Education Policy )

राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1986 के दोष निम्नवत् हैं। 

1)शिक्षा की व्यवस्था के  लिए व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहन की बात कही गई । प्रवेश के समय शिक्षण संस्थाओं में एक बड़ी धनराशि लेने को शोषण कहा जायेगा ना की सहयोग ।

2) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना के अंतर्गत प्राथमिक स्कूलों के जो भवन बनाये गये हैं, वह बहुत ही घटिया हैं। जो फर्नीचर अन्य शिक्षण सामग्री की व्यवस्था की गयी वे भी बहुत निम्न किस्म की है। 

3) नवोदय विद्यालयों की स्थापना करने के पीछे योग्य बच्चों को विकास के  अवसर प्रदान करना था परन्तु ऐसा नहीं हो सका । जिनके  लिए ये विद्यालय स्थापित किए गए थे, ये इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं । 

4) +2 स्तर पर जो व्यावसायिक पाठ्यक्रम  शुरू किए गए थे उनमें संसाधनों तथा योग्य अध्यापकों की कमी है। 

 5) इस शिक्षा नीति में आन्तरिक मूल्यांकन पर बल दिया गया जिसके कारण छात्रों के  शोषण को बढ़ावा मिला । 

इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1986 देश की पहली ऐसी शिक्षा नीति थी जिसके  साथ उसको क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक वित्त  व्यवस्था की भी घोषणा की गई । इसने अपने द्वारा दिए गए सुझावों पर अमल भी किया तथा उस सम्बन्ध में जितना हो सकता था, उतनी सहायता भी की । ये बात अलग है कि इस शिक्षा नीति के  जितने सकारात्मक परिणाम होने चाहिए थे, उतने नहीं हुए । यह अत्यंत दुख की बात है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का प्रभाव (Impact of National Education Policy)

इस शिक्षा नीति को लागू करने के लिए इसकी कार्ययोजना भी बनाई गई थी । इस नीति के द्वारा शिक्षा के  प्रत्येक स्तर का प्रसार एवं उन्नयन किया जा रहा है । इस नीति के जो शिक्षा पर प्रभाव पड़े। वे प्रभाव इस प्रकार हैं-

1)केंद्र और प्रान्तीय सरकारों ने शिक्षा पर खर्च किए जाने वाले बजट में वृद्धि कर दी है । 

2) शिशुओं की देखभाल तथा प्रारम्भिक शिक्षा के लिए अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं, देश में लगभग साढ़े तेरह लाख आँगनबढ़ियों और  बालवाढ़ियाँ ‘स्थापित की जा चुकी है । इनसे लगभग साढ़े तीन करोड़  बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं । 

3) पूरे देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू हो गई है। 

4) सभी प्रान्तो में +2 स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जा चुकी है । 

5) उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, प्रबन्ध शिक्षा, तकनीकी शिक्षा सभी में विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1986 का सारांश 

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY)1986 पहली नीति है जिसमें नीति के साथ-साथ उसको पूरा करने की योजना भी प्रस्तुत की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का दस्तावेज कुल 12 भागों में विभाजित है। ‘1986 का दस्तावेज‘ कार्य योजना-मई 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई और नवम्बर 1986 में इसकी कार्ययोजना नामक दस्तावेज प्रकाशित किया गया। यह कार्य योजना 24 खण्डो में विभाजित है। 

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NATIONAL EDUCATION POLICY) के महत्वपूर्ण प्रश्न

1)राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का दस्तावेज कुल कितने भागों में विभाजित है।

a)6 भागों में

b)12भागों में

c)9 भागों में

d)10 भागों में

उत्तर – (b)

2) कार्य योजना 1986 कितने भागों में विभाजित थी?

a) 24

b) 25

c) 26

d) 28

उत्तर – (a)

3) राष्ट्रीय शिक्षा नीति जिसमें उसको प्रस्तावित करने की योजना भी बनाई गयी, को कब प्रकाशित किया गया?

a)1972 में

b)1986 में

c)1999 में

d) 1976 में

उत्तर -(b)

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Sneha Katiyar

My name is Sneha Katiyar. I am a student. I like reading books

This Post Has 2 Comments

  1. Diksha

    Usefull information thanku so much

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