समावेशी शिक्षा क्या है?
समावेशी शिक्षा का अर्थ है कि सभी विद्यार्थी को समान शिक्षा देना या प्रदान करना। इस शिक्षा में सभी बच्चों को समान रूप से शिक्षा दी जाती है। सभी बच्चों से तात्पर्य उनमें से कुछ बच्चे विशिष्ट हो सकते हैं। शारीरिक रूप से विकलांग हो सकते हैं। या किसी शारीरिक कमी से ग्रसित हो सकते हैं।
जैसे-सुनाई ना देना, दिखाई ना देना चलने में कठिनाई, मानसिक रूप से विकलांग,या पढ़ने लिखने में कठिनाइ महसूस करना या वे बच्चे जो अन्य बच्चों से पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं।
बच्चों कि छुपी हुई प्रतिभा को निखारना समावेशी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है।
NCF 2005 के अनुसार –
“समावेशन कि प्रक्रिया में बच्चे को ना केवल लोकतंत्र कि भागीदारी के लिए सक्षम बनाया जा सकता है बल्कि, सीखने एवं विश्वास करने के लिए भी सक्षम बनाया जा सकता है कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए दुसरो के साथ रिश्ते बनाना, अन्तःक्रिया करना भी महत्वपूर्ण है। “
एस. के. दुबे. के अनुसार –
“समावेशी शिक्षा का तात्पर्य उस शिक्षा से है, जो सामन्य स्तर के छात्रों से अधिक मानसिक स्तर एवं निम्न मानसिक स्तर के छात्रों के लिए होती है। इसका स्वरुप छात्रों कि योग्यता, क्षमता एवं स्थतियों के अनुरूप होता है।”
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि शैक्षिक समावेशन किसी एक श्रेणी के छात्रों के लिए णी होता वरन उन सभी के लिए होता है, जिनकी उनको आवश्यकता है।
समावेशी शिक्षा =सामान्य बच्चे +विशिष्ट बच्चे
विशिष्ट बच्चे =प्रतिभाशाली बच्चे +शारीरिक एवं मानसिक रूप से अक्षम बच्चे
समावेशी शिक्षा में विशिष्ट बालकों के प्रकार
प्रत्येक विद्यालय में अधिकांश बालक व बालिकाएँ सामान्य या औसत श्रेणी के होते हैं और समस्याएँ भी प्राय: एकसमान होती हैं जबकि विद्यालय में कुछ बालक ऐसे भी होते हैं जो किसी एक सामान्य बालक की तुलना में बहुत जल्दी समझ लेते हैं या साधारण और सरल बात को समझने में समय लगाते हैं या कठिनाई अनुभव करते हैं । इस प्रकार के बालकों में कुछ प्रतिभाशाली बालक, कुछ पिछड़े और कुछ शारीरिक दोषों से युक्त बालक आदि आते हैं, जिन्हें विशिष्ट बालक की संज्ञा दी जाती हैं । विशिष्ट के संप्रत्यय, पहचान, शिक्षा व सेवाओं के सन्दर्भ में भली-भांति ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधारणत: इन्हें छ: श्रेणियों में विभक्त किया गया है । ये श्रेणियाँ “या समूह निम्न हैं
(1) बौद्धिक रूप से भिन्न
- मानसिक रूप से पिछडा
- शैक्षिक रूप से पिछड़ा
- प्रतिभावान
- सृजनात्मक
(2) शारीरिक ‘रूप से भिन्न
- विकलांगिक अक्षम
- चिरकालिक बीमार
- श्रवण क्षतियुक्त
- दृष्टि क्षतियुक्ल
- बहुल विकलांग
(3)मौखिक ‘संचार’ से भिन्न
- वाक् क्षतियुक्त
- भाषा विकलांग
(4) मनोसामाजिक रूप से भिन्न
- सामजिक रूप से कुसमायोजित्त
- समस्यात्मक बालक
- अपराधी बालक
- संवेगात्मक रूप से अशांत
(5)वंचन के आधार पर भिन्न
- वंचित बालक
(6)सांस्कृतिक रूप से भिन्न
- अधिगम असुविधायुक्त
- सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक
विभिन्न विद्वानों ने विशिष्ट बालकों को विशिष्टता की प्रकृति के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार बताए हैं।सुविधा की दृष्टि से हम निम्न बालकों का अध्ययन करते हैं
1) प्रतिभाशाली बालक
2) समस्यात्मक ‘बालक
3)पिछड़े बालक
4)मन्दबुद्धि बालक
5)अधिगम असमर्थी बालक
6)वंचित बालक
7)बाल-अपराधी बालक
8)सृजनात्मक बालक
9)शारीरिक विकलांग बालक
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शैक्षिक समावेशन कि विशेषताएँ
शैक्षिक समावेशन की परिभाषाओं एवं अवधारणाओं का विश्लेषण करने पर उसमे निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं।
- यह सामान्य शिक्षा व्यवस्था से पृथक रूप में पायी जाती है अर्थात इसकी सरंचना पृथक होती है।
- शैक्षिक समावेशन प्रतिभाशाली एवं शारीरिक अक्षमता से युक्त छात्रों के लिए ही होती है।
- शैक्षिक समावेशन में छात्रों की योग्यता एवं मानसिक स्तर का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है।
- यह उन छात्रों के लिए होता है जो की एक निश्चित शैक्षिक वातावरण में सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाते।
- शैक्षिक समावेशन की शिक्षा का पाठ्यक्रम एवं विधियाँ सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रम एवं विधियों से भिन्न होती हैं।
समावेशी शिक्षा के उद्देश्य
समावेशी शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- बच्चों में विशिष्ट बच्चों की पहचान करना और किसी प्रकार की असमर्थता का पता लगाकर उनको दूर करने की कोशिश करना।
- विशिष्ट बच्चों को आत्मनिर्भर बनाकर उन्हें समाज के साथ जोड़ना।
- लोकतान्त्रिक मूल्यों के उद्देश्यों को प्राप्त करना।
- समावेशी शिक्षा में यह सुनिश्चित करना होता हैं कि कोई भी बच्चा शिक्षा के अदिकार से वंचित नहीं रह जाये।
- जागरूकता कि भावना का विकास करना।
- समावेशी शिक्षा में यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा चाहे वह शारीरिक अपंगता से ग्रस्त हो अथवा किसी अन्य विकार से ग्रस्त हो। उसको शिक्षा के समान अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। उन्हें आंगनबाड़ी और स्कूली शिक्षा से किसी प्रकार से रोका नहीं जाये।
- समावेशी शिक्षा में यह सुनिश्चित किया जाये कि शारीरिक विकलांगता वा मानसिक रूप से अपंग बच्चों को पढ़ाने- लिखाने के लिए शैक्षिक संस्थाओं को अपने यहाँ गैर शैक्षिक संस्थाओं कि तरह विशेष व्यवस्था कि जानी चाहिए।
- इस शिक्षा के अंतर्गत शैक्षिक संस्थाओं का कर्तव्य है कि शहरों से दूर वाले छात्रों के लिए छात्रावास का प्रबंध करें।
समावेशी कक्षा में अध्यापक का योगदान
- कक्षा में विकलांग बच्चों कि पहचान कि जाये।
- विकलांग बच्चों को विद्यालय में स्वीकार किया जाये।
- सामान्य ओर विकलांग बच्चों के बीच सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करना।
- कक्षा में बच्चों को उचित स्थानों पर रखना
- जहां भी संभव हो वास्तुशिल्प बाधाओं को दूर किया जाये जिससे विकलांग बच्चे स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ पाएं।
- अभिभावकों ओर जनता को जागरूक करने के लिए विद्यालयों द्वारा कार्यक्रम चलवाया जाये।
- बच्चों को रेमेडियल निर्देश दिए जाएं।
- विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए मूल्यांकन में अनुकूलन हो।
- उपलब्धि और नैदानिक उपकरण का निर्माण किया जाये।
- शिक्षण में शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग किया जाये।
- लगभग सभी गतिविधियों में विकलांग बच्चों को शामिल करना।
सर्व शिक्षा अभियान में समावेशी शिक्षा
सर्व शिक्षा अभियान को सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा (UEE)के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया था यह एक शून्य अस्वीकृति नीति को अपनाता है और विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को परिवर्तित करने के दृष्टिकोण का उपयोग करता है सर्व शिक्षा अभियान का मुख्य उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण है। UEE के तीन महत्वपूर्ण पहलू 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों की पहुंच, नामांकन और अवधारण हैं।
SSA (सर्व शिक्षा अभियान )के तहत एक शून्य अस्वीकृति नीति अपनाई गई है, जो यह सुनिश्चित करती है कि हर विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को चाहे वह विकलांगता की किसी भी श्रेणी में आता हो सार्थक गुणवत्ता प्रदान करना है।
सारांश और निष्कर्ष
समावेशी शिक्षा, एक ही छत के नीचे विकलांगता और सीखने में कठिनाई से ग्रस्त बच्चों को सामान्य लोगों के साथ शिक्षित करना शिक्षा के प्रति एक नया दृष्टिकोण है
1880 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय प्रयोगों की सफलता के परिणामस्वरूप 1971 में योजना आयोग ने अपनी योजना में एकीकृत शिक्षा क कार्यक्रम को शामिल किया।सरकार ने दिसंबर 1974 में विकलांग बच्चों के लिए एकीकृत शिक्षा योजना की शुरुआत की।
यह एक केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसका उद्देश्य बच्चों को नियमित स्कूलों में विशेष आवश्यकताएंऔर उनकी उपलब्धि और अवधारण को सुविधाजनक बनाने के लिए शैक्षिक अवसर प्रदान करना था।
समावेशी शिक्षा, एक ही छत के नीचे विकलांगता और सीखने में कठिनाई से ग्रस्त बच्चों को सामान्य लोगों के साथ शिक्षित करना शिक्षा के प्रति एक नया दृष्टिकोण ।