Soil Pollution in Hindi || मृदा प्रदूषण के कारण और उपाय

मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) 

मृदा, पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। सभी वनस्पतियाँ तथा विभिन्न फसलें मृदा पर ही उगती हैं। उपजाऊ मृदा क्षेत्र में सबसे अधिक मानव जनसंख्या निवास करती है।  खनिज चट्टानों के टूटकर बने चूर्ण, जीवाश्म व जल के मिश्रण से मृदा का निर्माण होता है। खनिज पदार्थ, मृदा को पोषित करते हैं। जीवाश्म, मृदा की उत्पादकता में वृद्धि करते हैं तथा जल पोषक तत्वों का संचार करते हैं। जब मृदा के  रासायनिक संघटन (Chemical Composition)या भौतिक स्वरूप में बाधा आती है तो मृदा की उत्पादकता पर बुरा असर पड़ता है। अधिक समय तक प्रभावी रहने पर यह ‘मृदा प्रदूषण‘ (Soil Pollution) को जन्म देती है।  

जिस मृदा में कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम आदि प्रमुख तत्त्व उपलब्ध होते हैं, वह उपजाऊ मृदा (Fertile Soil) कहलाती है । इनके अतिरिक्त कुछ गौण तत्वों की उपस्थिति से मृदा की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है।  ये तत्व हैं -मैगनीज, सल्फेट, आयोडीन, ताँबा, जस्ता आदि। ऑक्सीजन, सिलिकॉन, एल्यूमिनियम तथा लोहा भी मृदा में खनिज तत्व के रूप में पाए जाते हैं। ये सभी खनिज पदार्थ एक निश्चित अनुपात में मिलकर मृदा की उर्वरता निर्धारित करते हैं।

यह प्रदूषण वास्तव में मानव के हस्तक्षेप के कारण होता है परन्तु फिर भी प्राकृतिक रूप से मृदा की उत्पादकता चक्रीय प्रक्रिया (Cyclic Process) के फलस्वरूप बनी रहती है । 

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मृदा प्रदूषण

मृदा प्रदूषण के कारण एवं स्रोत (Causes and Sources of Soil Pollution) 

मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) के कारण एवं स्रोत निम्नलिखित हैं

1) रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग (Increase in the Use of Chemical Fertilization and Insecticides)

कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए आजकल रासायनिक खादों, कीटनाशकों, कवक-नाशकों आदि का प्रयोग बहुत अघिक मात्रा में किया जा रहा है। इनके  उपयोग से फसल तो अच्छी होती हैं परन्तु रासायनिक तत्व मृदा में  एकत्रित होकर कुछ दुष्परिणामों को जन्म देते हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं

1) मृदा में पाए जाने वाले उन सूक्ष्म जीवों का विनाश होने लगता है जो जैविक क्रिया के माध्यम से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करते हैं। 

2) मृदा के तापमान पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।  

3) भूमि के pH को असन्तुलित कर देते हैं । जैसे-अमोनियम सल्फेट के निरन्तर प्रयोग से अम्लीयता तथा सोडियम नाइट्रेट रसायन क्षारीयता को बढ़ा देते हैं। 

4) डीडीटी. तथा बी.एच.सी. जैसे हानिकारक विषाक्त रसायन फसलों के माध्यम से मानव शरीर में पहुंचकर उसके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।  इनके  द्वारा पीलिया रोग हो जाता है। 

5) ये रसायन मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) को बढ़ाने के साथ कुछ अन्तराल के बाद भूमि की उर्वरता को नष्ट कर देते हैं। 

2) घरेलू अपशिष्ट (Domestic Wastes)-

घरेलू अपशिष्ठों में प्रमुखत: धूल, रद्दी कागज लकड़ी, काँच, चीनी मिट्टी के सामान, टीन के डिब्बे, राख, छोटे-छोटे कोयले के कण, कपड़े के टुकड़े, फर्नीचर के  टूटे हिस्से, टायर-टयूब ,रसोई के अपशिष्ट पदार्थ जैसै- सब्जी के छिलके, सड़े-गले फल, फलों की गुठलियाँ,  अण्डे के  छिलके तथा पॉलिथीन आदि आते हैं।  हमारे देश में शहरी आबादी द्वारा ठोस अपशिष्ट की मात्रा 15 करोड़ टन प्रतिवर्ष आँकी गई है।

इसका कारण घरों के आस-पास खुली जगहों पर कूड़ा फेंकना तथा स्वच्छता के प्रति जागरूकता न होना है । खुले स्थानों पर कूड़े के  सड़ने तथा इसके अव्यवस्थित निक्षेपण के कारण ही मृदा प्रदूषण फैलता है । 

3) नगर पालिका अपशिष्ट (Municipal wastes)

गलियों का कूड़ा, सब्जी बाजार व अस्पतालों का कचरा, औद्योगिक इकाईयों का कूड़ा, पशुओं का चारा, मिश्रित गोबर व लीद, नालियों व गटर का कूड़ा, चर्म शोधन संस्थानों से निकला कूड़ा आदि नगरपालिका अपशिष्ट के अन्तर्गत आते हैं । 

प्राय: नगर पालिका के  कर्मचारी कूड़े को  समीप के खुले स्थानों पर डाल देते है।  दूरवर्ती स्थानों पर इस कूड़े को ले जाने की सुदृढ़ व्यवस्था न होने के  अभाव में यह मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) का कारण बनता है । 

4) औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial Wastes)-

इन अपशिष्टों में मुख्यतः विषैले दुर्गन्धयुक्त तथा कुछ ज्वलनशील पदार्थ (Inflammable Material) होते हैं।  ये सभी मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) फैलाते हैं। 

5) अन्य कारण (Other Causes)-

इन ‘अन्य कारणों की व्याख्या निम्न बिन्दुओं के आधार पर की जा सकती है

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मृदा का अम्लीय विकार (Deformity of Soil Due to Acidity)-

आर्द्र क्षेत्रों की भुमि में आद्रता के कारण हाइड्रोजन आयनों की मात्रा बढ़ जाती है और हाइड्रोक्सिल आयतों की मात्रा अपेक्षाकृत कम होने लगती है।  इससे मृदा के pH का मान 7 से कम हो जाता है और धात्विक तत्व जेसे-लोहा, एल्यूमीनियम आदि मृदा में घुल जाते हैं जो पौधे के लिए विष का काम करते हैं। 

मृदा में मैंगनीज यौगिकों की मात्रा बढ़ने से पौधों की उपापचयी क्रियाओं में बाधा आ जाती है।  जिससे जो जीवाणु मृदा की उर्वरता बढ़ाते हैं, उनकी क्रियाशीलता मन्द हो जाती है। अम्लीय भूमि में उगने वाली फसलों को कैल्शियम, फॉस्फोरस, मालिब्डेनम तथा मैग्नीशियम आदि की कम मात्रा उपलब्ध होने से उनके  उत्पादन में कमी आती है । 

मृदा का क्षारीय विकार (Deformity of Soil Due to Basicity)-

शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में मृदा जल के अधिक वाष्पीकरण के कारण क्षारीयता बढ़ जाती है। भूमि की सतह पर सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा पोटेशियम के  क्लोराइड कार्बोनेट, बाई-कार्बोनेट, नाइट्रेट्स आदि पाए जाते हैं जो भूमि को क्षारीय बनाते हैं क्योंकि ऐसी भूमि में हाइड्रोजन आयन की अपेक्षा हाइड्राक्सिल आयन की सान्द्रता बढ़ जाती है तथा मृदा का pH मान 7 से अधिक हो जाता है। 

भूमि की क्षारीयता बढ़ने के अन्य कारण जल निकासी का उचित प्रबन्ध न होना नहरी जल से निरन्तर सिंचाई करना, सोडियम नाइट्रेट उर्वरक को फसलों के अधिक उपयोग में लाना आदि भी है । 

भू-क्षरण (Soil-Erosion)-

तेज वर्षा, बाढ़, आँधी, तूफान आदि आपदाओं से कई वर्षों में निर्मित हुई भूमि की ऊपरी परत उड़ जाती है या बह जाती है जिससे निश्चित स्थान की उर्वरता घट जाती है। यह भू-क्षरण जल व वायु के द्वारा भी होता है।

सूक्ष्म जीवों का आक्रमण (Attack of Microorganism)

मृदा में रोगजनित सूक्ष्म जीव (Pathogens) व बैक्टीरिया मृदा की उर्वरता पर आक्रमण करके मृदा को प्रदूषित करते हैं । 

मृदा प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Soil Pollution) 

पर्यावरण में मृदा एक आवश्यक व महत्त्वपूर्ण घटक है तथा एक आधारभूत संसाधन है। इसकी गुणवत्ता की क्षति मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव डालती है। इसके प्रभाव निम्नलिखित हैं

1) मृदा की गुणवत्ता ह्रास के कारण फसल उत्पादन में कमी आती है । 

2) प्रदूषित मृदा में उपजी फसलें मानव तथा अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती हैं । 

3) जैविक (Biological), रेडियोधर्मी (Radioactive) तथा रासायनिक प्रदूषण (Chemical Pollution) उत्पन्न होते हैं जो पर्यावरण को असन्तुलित करते हैं।  

मृदा प्रदूषण को रोकने के उपाय (Remedial Measures/Solution to Prevent Soil Pollution) 

मृदा प्रदूषण को रोकना आज की महती आवश्यकता है इसे रोकने के निम्न उपाय हैं

1) रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग, भू-परिष्करण (Land Reclaimation), व यांत्रिक क्रियाओं को प्राथमिकता देना। 

2) अम्लीय भूमि के विकार को दूर करने हेतु समुचित जल निकास की व्यवस्था, चूने का उपयोग तथा पोटॉशयुक्त खादों का प्रयोग करना।  ऐसी भूमि पर सहिष्णु फसलें उगाने से भी काफी हद तक अम्लीयता को रोका जा सकता है । 

3) क्षारीय भूमि के विकार को दूर करने हेतु जैविक खाद तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाए भूमि की ऊपरी सतह पर जमें क्षारों को खुरचकर, बहाकर या निक्षालन द्वारा हटाया जाए ।

4) घरेलू अपशिष्ठों को जैविक अपघट्य (Biodegradable) तथा अजैविक अपघट्य (Non-Biodegradable) कचरे को अलग-अलग करके जैविक खाद बनाया जाए तथा अजैविक अपघट्य (Non-Biodegradable) का पुनर्चक्रण (Recycle) किया जाए। 

5) ठोस अपशिष्टी को आवासीय क्षेत्रों की जमीन को भरने (Landfill) के काम में लिया जाए। 

6) बंजर भूमि पर शुष्क वातावरण के अनुकूलित -जीरोफिटिक पौधों को उगाया जाए। 

7) जैविक उर्वरकों (Biological Fertilization) का प्रयोग करके भूमि को उर्वर बनाया जाए ताकि पौधों की जड़ें मृदा क्षरण को रोक सकें। 

अत: स्पष्ट है कि मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) जैसी समस्या अनेक पर्यावरणीय समस्याओं की जन्मदात्री है इसलिए उपरोक्त उपायों को अपनाकर मृदा को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है । 

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Sneha Katiyar

My name is Sneha Katiyar. I am a student. I like reading books

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