लाइकेन क्या हैं? (What is Lichen?)
यह थैलोफाइटा प्रकार की वनस्पति है जो कवक (Fungi) तथा शैवाल (Algae) दोनों से मिलकर बनती है। इसमें कवक तथा शैवालों का सम्बन्ध परस्पर सहजीवी (Symbiotic) जैसा होता है। कवक जल, खनिज-लवण, विटामिन्स आदि शैवाल को देता है और शैवाल प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण कर कवक को देता है। कवक तथा शैवाल के बीच इस तरह के सहजीवी सम्बन्ध को ‘हेलोटिज्म’ कहते हैं। ‘लाइकेन‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ग्रीक दार्शनिक थियोफ्रेस्टस ने किया। लाइकेन का अध्ययन लाइकेनोलॉजी कहलाता है।

लाइकेन के प्रकार (Types of Lichen)
आकार एवं संरचना के आधार पर लाइकेन को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।
1) क्रस्टोस (Crustose)
इसमें थैलस चपटा तथा आधार लम्बा होता है।
2) फीलिओज (Foliose)
इसमें थैलस में शाखित पत्तियों के समान अतिवृद्धियाँ होती हैं।
3) फ्रूटीकोज (Fruticose)
इसमें थैलस काफी विकसित तथा जनन अंग उपस्थित होता है।
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लाइकेन में प्रजनन (Reproduction inLichen)
लाइकेन में प्रजनन तीन प्रकार से होता है-
- कायिक
- लैंगिक
- अलैंगिक।
लाइकेन की विशेषताएं (Characteristics of Lichen)
- यह वायु प्रदूषण के संकेतक (Indicator) होते हैं। जहाँ वायु प्रदूषण अधिक होता है, वहाँ पर लाइकेन नहीं उगते हैं।
- पेड़ों की छालों पर उगने वाले लाइकेन को कोर्टिकोल्स तथा खाली चट्टानों पर उगने वाले लाइकेन को सेक्सीकोल्स कहतें हैं।
लाइकेन का महत्व (Importance of Lichen)
1)यह मृदा निर्माण की प्रक्रिया में सहायक होते हैं ।
2) कई लाइकेन खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। रेंडियर मॉस या क्लेडोनिया को आर्कटिक भाग में भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। आइसलैंड मॉस को स्वीडन, नार्वे तथा आइसलैंड जैसे यूरोपीय देशों में केक बनाने में उपयोग में लाया जाता है। जापान के निवासी इन्डोकार्पन का उपयोग सब्जी के रूप में करते हैं। दक्षिण भारत में परमैलिया को सालन (Curry) बनाने में उपयोग करते हैं।
3) आर्चिल, लेकेनोरा जैसे-लाइकेन का उपयोग नीला रंग बनाने में किया जाता है।
4) प्रयोगशाला में प्रयुक्त होने वाली लिटमस पेपर रौसैला नामक लाइकेन से प्राप्त किया जाता है।
5) लौबेरिया, इरवेनिया, रेमेनिला आदि लाइकेन का उपयोग इत्र (Perfumes) बनाने में किया जाता है।
6) परमेलिया सेक्सटिलिस का उपयोग मिरगी (Epilepsi) रोग की औषधि बनाने में होता है।
7) डायरिया, हाहड्रोफोबिया, पीलिया, काली खाँसी आदि रोगों में उपयोगी कई प्रकार की औषधियाँ लाइकेन से बनायी जाती हैं।
8) असमिया नामक लाइकेन से प्रति-जैविक (Antibiotic) असनिक एसिड प्राप्त किया जाता है।